Star Khabre. Delhi; 24th March : पिछले एक दशक में देश के बीमा क्षेत्र में कई बदलाव हुए हैं। नियामकीय बदलावों से बीमा कंपनियों की वृद्धि की रफ्तार भी बदली है और प्रतिस्पर्धा में भी तगड़ी बढ़ोतरी हुई है। जीवन और गैर-जीवन बीमा दोनों ही उद्योगों के लिए नियामकीय ढांचा अब स्थायी हो गया है। इसीलिए उद्योग से जुड़े लोगों को लगता है कि अगले कुछ वर्षों में देसी बीमा कंपनियां दो अंकों में वृद्धि कर सकती हैं।
पिछले 10 साल में इस उद्योग में जो बदलाव हुए हैं, उनमें यूनिट लिंक्ड बीमा योजना (यूलिप) में बदलावों से लेकर पेंशन के नियमों में सख्ती और परंपरागत बीमा योजनाओं के नियमों में भी संशोधन शामिल हैं। दूसरी ओर गैर-जीवन बीमा उद्योग की ज्यादातर श्रेणियों में जनवरी, 2007 से ही नियामक द्वारा शुल्कों पर रोकटोक का दौर खत्म कर दिया गया। बीमा कानून (संशोधन) अधिनियम, 2015 के कुछ प्रावधान तैयार करने के लिए कई नियमनों की जरूरत महसूस की गई। कानून में संशोधन से यह सुनिश्चित हो गया कि विदेशी कंपनियां यहां की बीमा कंपनियों के साथ बनाए साझे उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 49 फीसदी कर सकती हैं। पहले यह सीमा 26 फीसदी ही थी। आर्थिक मामलों की संसदीय समिति ने पांच सरकारी सामान्य बीमा कंपनियों को शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराने की अनुमति 2017 में दे दी।
पिछले कुछ महीनों में न्यू इंडिया एश्योरेंस और जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरशन ऑफ इंडिया ने बाजार में कदम रखा है। निजी बीमा कंपनियां भी अपने शेयरों को सूचीबद्ध कराने के लिए दौड़ रही हैं। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ होड़ में आगे रही। उसने 2016 में शेयर बाजार का दरवाजा खटखटाया था और सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय बीमा कंपनी बन गई।
2010-11 में नियम-कायदों में परिवर्तन किए जाने के बाद से ही भारतीय जीवन बीमा उद्योग बड़े बदलावों से रूबरू हो रहा है। नियामक ने जो तब्दीलियां कीं, उनकी वजह से उद्योग की वृद्धि, प्रतिस्पर्धा की तस्वीर और मुनाफे में खासा बदला आ गया है। हालांकि 2013-14 तक के 4-5 साल इस उद्योग के लिए बड़ी मुश्किलों से भरे रहे। लेकिन उसके बाद निजी बीमा कंपनियों को स्थिरता का अहसास हुआ और पिछले तीन साल में नए कारोबारों में सकारात्मक वृद्धि हुई है, लागत में कमी आई है और पुरानी पॉलिसियां पहले के मुकाबले अधिक संख्या में चल रही हैं। मगर बीमा क्षेत्र से जुड़े लोग यह भी मानते हैं कि खास तौर पर परंपरागत कारोबार के लिए आए नए नियमों में ही असली जोखिम है। नए नियमों के बाद लिंक्ड योजनाओं में तो बहुत साफगोई आ गई है, लेकिन परंपरागत पॉलिसियों में पारदर्शिता बहुत कम है। उनमें शुल्क लगाने पर ज्यादा बंदिश नहीं है और पॉलिसी बीच में ही खत्म करने पर अधिक शुल्क वसूला जाता है। 2010 में बीमा नियामक आईआरडीएआई ने एक अधिसूचना जारी की थी, जिसके मुताबिक सभी बीमाकर्ताओं के लिए योजना में गारंटी देना तथा एन्यूटाइजेशन अनिवार्य कर दिया गया। इसके बाद यूलिप की बिक्री तो गड़बड़ा ही गई, पेंशन बीमा योजनाओं की बिक्री में भी गिरावट दर्ज की गई। जीवन बीमा के व्यक्तिगत नए कारोबार में पेंशन योजनाओं की हिस्सेदारी 2009-10 में लगभग 32 फीसदी थी, जो इन नियमों के कारण 2014-15 में 2 फीसदी पर ही सिमट गई।
मगर गैर-जीवन बीमा उद्योग को वास्तव में प्रतिस्पर्धी बनाने के मकसद से उसमें शुल्कों पर अंकुश की व्यवस्था 1 अप्रैल, 2007 को खत्म कर दी गई। उससे पहले एक शुल्क सलाहकार समिति थी, जो बीमा क्षेत्र में शुल्क के ढांचे की डोर अपने हाथ में रखती थी। इस कदम से भारत के गैर-जीवन बीमा उद्योग की तस्वीर बदल गई और तेज वृद्धि का रास्ता साफ हो गया। सामान्य बीमा उद्योग पिछले एक दशक से करीब 15 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। मगर पिछले दो-तीन साल में गैर-जीवन बीमा उद्योग ने असली तरक्की वाहन बीमा, स्वास्थ्य बीमा तथा फसल बीमा की वजह से की है।
गैर-जीवन बीमा के लिए भी चुनौतियां हैं और आने वाले वर्षों में अंडरराइटिंग मुनाफा उसके लिए बड़ी चुनौती होगा। अंडरराइटिंग मुनाफे का मतलब उस मुनाफे से है, जो कंपनी को दावे और खर्च निपटाने के बाद हासिल होता है। फ्यूचर जेनराली इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी के जी कृष्णमूर्ति राव कहते हैं, 'सबसे बड़ी चुनौती मुनाफा हासिल करने की क्षमता है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में प्रीमियम दरें बहुत प्रतिस्पर्धी बनी हुई हैं और लंबे अरसे तक ऐसा ही चलना बहुत मुश्किल होगा। संपत्ति, वाहन और स्वास्थ्य बीमा में भी प्रीमियम बहुत प्रतिस्पर्धी हो गए हैं। बीमा कंपनियां निवेश से हुए मुनाफे के बल पर लाभ दिखा रही हैं। लेकिन ब्याज दरें नीचे आ रही हैं, जिसके कारण आगे जाकर निवेश से होने वाली आय घट सकती है। इसीलिए कंपनियों को अंडरराइटिंग और शुल्कों को मजबूती देने पर ध्यान देना होगा ताकि वे अपने मूल कारोबार में भी मुनाफा कमाने की स्थिति में आ जाएं।' मगर यह भी सच है कि अब इस उद्योग की कंपनियों को इस बात की पूरी उम्मीद है कि जीवन बीमा और गैर-जीवन बीमा दोनों ही उद्योगों में दो अंकों में वृद्धि होगी और चलती रहेगी।